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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान


प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.

अथवा

गर्भाधान के विषय में आप क्या जानती हैं? इस प्रक्रिया की कि तनी अवस्थाएँ हैं? स्पष्ट कीजिए।

सम्बन्धित लघु प्रश्न

1. गर्भाधान या निषेचन से आप क्या समझते हैं?

2. गर्भाधान की प्रक्रिया में कितनी अवस्थाएँ होती हैं?

3. गर्भकालीन विकास की अवस्थाएँ बताइए।

उत्तर-

गर्भाधान की प्रक्रिया
(Process of Conception)

गर्भधारण स्त्री एवं पुरुष-कोषों के संयोग का परिणाम है। स्त्री-कोष को 'अण्डाणु' तथा पुरुष कोष को 'शुक्राणु कहा जाता है। अण्डाणु का निर्माण स्त्री की डिम्ब ग्रन्थि में होता है और शुक्राणु का निर्माण पुरुष के वृषण में होता है। पुरुष के शुक्राणु का स्त्री के अण्डाणु से संयोग होने की प्रक्रिया 'गर्भधारण' या 'निषेचन' कहलाती है अर्थात् जब पुरुष का शुक्राणु स्त्री के अण्डाणु से मिलता है तभी एक नये जीवन या भ्रूण का निर्माण होता है। यहीं से स्त्री की गर्भावस्था की यात्रा प्रारम्भ हो जाती है।

स्त्री का अण्डाणु बहुत सूक्ष्म होता है। इसकी आकृति गोलाकार होती है और इसकी परिधि प्रायः 125 मिलीमीटर होती है। यह एक खोल में सुरक्षित रहता है इसके अन्दर भोज्य पदार्थ की एक तह होती है। अण्डाणु के बीच में एक 'केन्द्रक होता है पुरुष का शुक्राणु स्त्री के अण्डाणु से कई गुना छोटा होता है और इसमें अपनी लम्बी पूँछ हिलाते हुए आगे बढ़ने की क्षमता होती है। इस प्रकार शुक्राणु में गतिशीलता की क्षमता पाई जाती है जबकि अण्डाणु स्वयं गतिशील नहीं हो सकता है। इसलिए गर्भाधान के लिये शुक्राणु को ही अण्डाणु के पास पहुँचने के लियें गतिशील होना पड़ता है।

सम्भोग के उपरान्त लाखों की संख्या में पुरुष के शुक्राणु स्त्री की योनि में प्रविष्ट हो जाते हैं। यौन समागम के 1 घण्टे के अन्दर ही वे स्त्री के योनि मार्ग से गुजरते हुए अण्डवाहिनी नलिका में पहुँचते है जब उनका संयोग परिपक्व अण्डाणु से हो जाता है तो गर्भधारण होना सम्भव हो जाता है। किन्तु यदि उनका परिपक्व अण्डाणु से संयोग नहीं हो पाता है तो वे स्वयं कुछ दिनों में नष्ट हो जाते हैं। स्त्री-पुरुष संगमोपरान्त पुरुष के शुक्राणु स्त्री के गर्भाशय गद्दा पर एकत्रित हो जाते हैं तथा तीव्र हॉरमोन आकर्षण के द्वारा अण्डावाहिनी नलिकाओं में खींच लिये जाते हैं। यहाँ पर यदि हॉरमोनयुक्त अण्डाणु उपस्थित होता है तो विभिन्न शुक्राणुओं में एक शुक्राणु उस अण्डाणु की ऊपरी सुरक्षा पर्त को तोड़कर केन्द्रक से जा मिलता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के साथ-साथ जीवन का आरम्भ हो जाता है।

जन्म के पूर्व की विकास अवस्था को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -

1. डिम्बावस्था (The Period of Ovum) - यह अवस्था गर्भाधान से लेकर दूसरे सप्ताह तक होती है। डिम्बावस्था तक इसका आकार एक समान ही बना रहता है। स्त्री के गर्भाशय तक पहुँते समय इनका आकार पिन के ऊपर वाली टोपी (head) के समान होता है। केन्द्रक के चारों ओर उपस्थित वसा द्रव के द्वारा इसको पोषण प्राप्त होता है। इसी बीच डिम्ब का कई बार विभाजन तथा उपविभाजन होता है। जिसके कारण कोशिकाओं का एक झुण्ड जैसा आकार निर्मित हो जाता है। इन कोशिकाओं की बाह्य तथा आन्तरिक परत भ्रूण के रूप में विकसित होती है। इसी बीच गर्भाशय की आन्तरिक दीवार में रक्त नलिकाओं की वृद्धि हो जाती है जिससे कि गर्भाशय की दीवार मोटी, गद्दीदार तथा मुलायम हो जाती है 10 दिनों की अवधि में यह डिम्ब गर्भाशय की दीवार में रक्त वाहिकाओं को तोड़कर उसमें चिपक जाते हैं। अब इसका पोषण गर्भाशय की रक्त वाहिकाओं के द्वारा होता है।

2. भ्रूणावस्था (The Period of Embryo) - यह गर्भकालीन विकास की दूसरी अवस्था है जो गर्भाधान के दूसरे सप्ताह से लेकर दूसरे माह के अन्त तक चलती है। गर्भकालीन विकास की दृष्टि से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण अवस्था है। इस अवस्था के अन्त तक भ्रूण मानव आकृति प्राप्त कर लेता है। इस अवस्था में विकास की गति बहुत तीव्र होती है। जिससे भ्रूण के अन्दर कई महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। शरीर के सभी प्रमुख अंगों का विकास इसी अवस्था में होता है। इस समय तक भ्रूण की लम्बाई सवा इंच से दो इंच तक भार लगभग 200 ग्राम हो जाता है। इस अवस्था में भ्रूण का स्वरूप नवजात शिशु के समान नहीं होता है। सिर का आकार अन्य अंगों की अपेक्षा बड़ा होता है, कान भी सिर से काफीनीचे प्रतीत होते हैं, नाक में भी केवल एक छिद्र होता है और माथा काफीचौड़ा दिखाई देता है।

3. गर्भस्थ शिशु अवस्था (The Period of Foetus) - गर्भकालीन विकास की तीसरी और आखिरी अवस्था 'गर्भस्थ शिशु की अवस्था' कहलाती है। यह तीसरे मास के प्रारम्भ से जन्म लेने के पूर्व तक होती है। यह अवस्था निर्माण की नहीं अपितु विकास की होती है क्योंकि भ्रूणावस्था में जिन अंगों का निर्माण हो गया होता है, उन्हीं अंगों का विकास इस अवस्था में होता है। इस अवस्था के प्रारम्भ होने से अन्त तक प्रत्येक मास गर्भस्थ शिशु का भार तथा लम्बाई में निररन्तर वृद्धि होती रहती है।

गर्भस्थ शिशु की अवस्थाओं का विकास सामान्यतः गर्भस्थ शिशु या भ्रूण का विकास 9 माह तक होता रहता है जिसे निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-

1. तीसरे महीने से प्रत्येक महीने गर्भस्थ शिशु के भार तथा आकार में वृद्धि होती है। तीसरे माह के अन्त तक लम्बाई 6 सेमी तथा भार 3/4 औंस हो जाता है। हाथ तथा पैरों में उंगलियों का निर्माण होने लगता है तथा सम्पूर्ण शरीर पर पतली मुलायम गुलाबी रंग की त्वचा आ जाती है। गर्भ का पोषण अब गर्भनाल की बजाय नाभिरञ्जु द्वारा होने लगता है।

2. चौथे माह में भ्रूण 4 इंच लम्बा और 4 औंस भार का हो जाता है। इस समय उसके हाथ-पैर की उंगलियों में नाखून बन जाते हैं तथा कमर स्पष्ट हो जाती है और मसूड़ों के अन्दर विकास की प्रक्रि या प्रारम्भ हो जाती है। गर्भवती स्त्री के पेट का आकार पहले की अपेक्षा कुछ बड़ा हो जाता है।

3. पाँचवें माह में शिशु की लम्बाई 20 सेमी तथा भार 300 ग्राम हो जाता है। हृदय की धड़कन प्रारम्भ हो जाती है। माँसपेशियाँ सक्रिय हो जाती हैं जिससे शिशु की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है।

4. छठवें माह में त्वचा रोयेंदार हो जाती है तथा शरीर पर तरल पदार्थ एकत्रित होने लगता है। इस अवस्था में सिर का विकास भी तीव्र गति से होता है। सिर जो कि तीसरे माह के अन्त तक सम्पूर्ण शरीर का 1/3 भाग होता है वह अब छठवें माह के अन्त तक सम्पूर्ण शरीर का 1/2 भाग हो जाता है।

5. सातवें माह में शिशु माँ के पेट में स्थिर हो जाता है और जन्म लेने तक उसी स्थिति में पड़ा रहता है।

6. आठवें माह में शिशु का वजन 5 पौंड तथा लम्बाई 18 इन्च हो जाती है। त्वचा झुर्रीदार हो जाती है। सभी अस्थियाँ बनकर पूर्ण हो जाती है। हृदय, फेफड़े तथा नाड़ी मण्डल अनुपात में आ जाते हैं और अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं।

7. नवें माह में शिशु की त्वचा पर स्वाभाविक रंग आ जाता है। सिर पर घने बाल आ जाते हैं। इस समय से शिशु धीरे-धीरे गर्भाशय में नीचे की ओर खिसक ने लगता है और जन्म तक इसी स्थिति में रहता है। शिशु के जन्म के लिए 275 से 280 दिन की आवश्यकता होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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